पद्म श्री हलधर नाग ने रच डाले काव्य-महाकाव्य, ज्ञान शब्द को परिभाषित किया।

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ज्ञान एक ऐसा शब्द जिसे परिभाषित करना आसान नहीं अक्सर हम किताबी शिक्षा को ज्ञान समझ बैठते हैं, लेकिन क्या किताबी शिक्षा ज्ञान का पूर्ण सार है, नहीं ज्ञान किताबी शिक्षा से परे है। ज्ञान आपके और हमारे अंदर ही निहित है, जरूरत है उस ज्ञान को समझने की और उसका प्रसार करने की। ज्ञान प्रकृति की तरह हर जगह विद्यमान है, बस हमारे अंदर इतनी समझ होनी चाहिए कि हम उस ज्ञान को समझ कर ग्रहण सकें।

आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने पढ़ाई नहीं की है, लेकिन वह काव्य और महाकाव्य की रचना के लिए पद्मश्री से सम्मानित है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वर्ष 2016 में भारत की सर्वोच्च नागरिक सम्मान समारोह में उस शख्स को पद्मश्री से सम्मानित किया था। उस शख्स का नाम है “हलधर नाग”। 66 वर्षीय हलधर नाग उड़ीसा के रहने वाले हैं।ज्ञान शब्द को परिभाषित किया है, पद्म श्री हलधर नाग ने रच डाले काव्य-महाकाव्य

हलधर नाग ने अब तक 20 महाकाव्य और बहुत सी कविताएं लिख डाली है, हलधर नाग का ज्ञान किसी किताबी शिक्षा का मोहताज नहीं है बल्कि उनके जन्म से ही उनके साथ जुड़ा हुआ है। आपको बता दें कि संबलपुर विश्वविद्यालय में कवि हलधर नाग द्वारा लिखी गई एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ भी पाठ्यक्रम का हिस्सा है। हलधर नाग की यह विशेषता है कि वह जो भी लिखते हैं, उन्हें हर एक शब्द याद हो जाता है।

कवि हलधर ने ओडिशा के बाड़गढ़ जिले के घेंस गाँव में एक निर्धन परिवार के घर जन्म लिया था। 10 वर्ष की आयु में ही हलधर के सर से पिता का साया उठ चुका था। जिसकी वजह से उनके छोटे हाथों में उनके घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई और उन्हें अपनी पढ़ाई तीसरी कक्षा से ही छोड़नी पड़ी। घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए उन्होंने स्थानीय मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने का काम शुरू किया। तभी 2 साल बाद एक सज्जन पुरुष ने उनको एक हाई स्कूल में रसोइया के काम पर रखवा दिया और वह 16 साल तक वहां काम करते रहें। हलधर ने भले ही अपनी पढ़ाई तीसरी कक्षा में छोड़ दी थी लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अब तक 5 शोधार्थियों ने उन पर पीएचडी कर डाली है।

समय के साथ गांव में स्कूल बढ़ने लगे और हलधर ने एक बैंकर से ₹10000 कर्ज लिए, उस कर्ज से उन्होंने एक छोटी सी दुकान खोली और स्कूल के बच्चों के लिए कुछ किताबें और खाने पीने का सामान बेचने लगे। इसी दौरान हलधर को अपने अंदर छिपी प्रतिभा का पता चला और उन्होंने वर्ष 1990 में कविता लिखना शुरू किया, उनकी पहली कविता “धोड़ो बरगद” (द बिग बनयान ट्री) जिसे उन्होंने स्थानीय प्रकाशन में प्रकाशित होने के लिए भेज दिया। उसके साथ उन्होंने चार और कविताएं लिख डाली। हलधर की सारी कविताएं प्रकाशित हुई और लोगों द्वारा बहुत पसंद की जाने लगी।इस बारे में कवि हलधर कहते हैं कि “यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी और इस वाकये ने ही मुझे और अधिक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने अपने आस–पास के गांवों में जाकर अपनी कविताएँ सुनाना शुरू किया और मुझे लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली”।

अपनी कविताओं से हलधर लोगों को जागरूक करके समाज में फैली कुरीतियों को ख़त्म करके एक सुसंस्कृत समाज का निर्माण करना चाहते हैं। उड़ीसा में हलधर कवि रत्न के नाम से प्रसिद्ध है, मुख्य रूप से वह कौसली भाषा में लिखते हैं।

कवि हलधर नाग का कहना है कि “मुझे यह देखकर अच्छा लगता है कि युवा वर्ग कौसली भाषा में लिखी गई कविताओं में विशेष दिलचस्पी रखता है।” हलधर जी का मानना है कि कविता वास्तविक जीवन से जोड़ी होनी चाहिए तथा साथ ही उसमें सामाजिक सन्देश भी होना चाहिए तभी वह सार्थक होती है। कवि हलधर प्रतिदिन 3-4 कार्यक्रमों में भाग लिया करते हैं और उसमें अपनी कविताएँ सुनाकर लोगों को आनन्दित करते हैं। कवि हलधर नाग सादा जीवन जीने में विश्वास रखते हैं उन्हें कोई भी दिखावा पसंद नहीं है। आज तक उन्होंने कोई चप्पल भी नहीं पहनी है, वह सिर्फ एक सफेद धोती और बनियान में नजर आते हैं। उनकी सादगी में ही उनका सारा ज्ञान छुपा है। कवि हलधर का जीवन हम सबके लिए एक उदाहरण है।

जिससे आज की पीढ़ी को सीख मिलती है कि प्रतिभा कभी किसी अभाव अथवा बंधन की मोहताज़ नहीं होती है क्योंकि कवि हलधर के पास ना तो किताबी ज्ञान था और ना ही कोई सुख सुविधा, बस था तो संघर्ष भरा जीवन, फिर भी उन्होंने ख़ुद पर विश्वास करके जो उपलब्धि प्राप्त की वह सराहनीय है।

 

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