आज की दुनिया में कोई भी टैंलेंट आपके अंदर है तो उसकी पहचान करने के लिए आपके पास एक बड़ा ही अच्छा प्लेटफार्म है। वैसे मिनिएचर आर्ट आजकल खूब ट्रेंड में है। क्ले से खूबसूरत मिनिएचर आर्ट बनाने वालों की देश में कमी नहीं है। ऐसी ही एक चेन्नई की मां बेटी की जोड़ी है जो फूड से मिनिएचर आर्ट बनाती हैं।
सुधा और नेहा चंद्रनारायण ने अब तक 100 से ज्यादा फूड मिनिएचर आर्ट बनाएं उनके द्वारा तैयार किए नारियल की चटनी सांभर डोसा और इटली जैसे डिजाइन को देखकर एक पल के लिए यकीन ही नहीं होता कि यह कैसे बनाए जाते हैं। नेहा ने द बेटर इंडिया को बताया कि उनकी मां ने उन्हें जन्मदिन पर डोसा मिनिएचर बनाकर गिफ्ट किया था नेहा ने जब उसे अपने दोस्तों को दिखाया तो सब हैरान रह गए। तब से ही उनकी मां अलग-अलग मिनिएचर जैसे पानी पूरी, वडापाव और पावभाजी जैसे चीजें बनाती हैं।
नेहा की उम्र 30 वर्ष है और वह कंप्यूटर साइंस की स्टूडेंट है। वह कहीं से इस आर्ट की पढ़ाई नहीं की है। लेकिन पिछले 15 सालों से क्ले से आर्ट बना रही हैं। इस जोड़ी ने सीएम आर्ट्स मिनिएचर की शुरुआत की है और दोनों फूड बेच भी रही है। खाने के आधार पर इनका साइज 3 से 10 सेमी के बीच होता है।
नेहा और सुधा को मलेशिया, सिंगापुर और अमेरिका जैसे देशों से भी आर्डर मिलते हैं। हर महीने इन्हे लगभग डेढ़ सौ आर्डर मिल जाते हैं। 50 वर्षीय सुधा बताती है कि उन्हें बचपन से ही आर्ट से प्यार था। नेहा को यह विरासत में मिली है। उन्होंने बताया कि वह क्ले आर्ट की एक कोर्स की है। वह क्ले से ज्वेलरी, फूल, बोनसाई और दूसरे पेड़ पौधे बनाती थी और इन्हे दूसरों को गिफ्ट कर दी थी।
उन्होंने आगे कहा परिवार चेन्नई शिफ्ट हो गया और यहीं पर उन्होंने घर में एक छोटी सी वर्कशॉप खोली उन्होंने जो सीखा उसे दूसरों से शेयर करने की बारी थी। 2015 से 18 से 80 साल की उम्र तक सभी लोगों को यह आर्टिस्टिक स्किल्स शुरू किया। बेटी के कहने पर इसे उद्योग के रूप में शुरुआत की। उन्होंने आगे बताया कि इस कला को बेहद ही धैर्य से बनाया जाता है । वह ड्राई एयर नेचुरल प्लेस कलर करती हैं जो इको फ्रेंडली है।
सुधा ने बताया कि डोसा प्लेट बनाते हैं तो उसमें 1 दिन का समय लगता है। वही अगर उत्तर भारत या दक्षिण भारत की थाली बनाएं तो 3 दिन लगते हैं। यह दोनों एक दिन लगभग 6 घंटे इन पर काम करते हैं। इनके फाइनल प्रोडक्ट ₹400 से लेकर ₹2000 तक के होते हैं। इस काम के लिए बेहद मेहनत और धैर्य की जरूरत होती है।
सुधा के साथ उनका वर्कशॉप भी काफी मशहूर हो गया है। उनसे सीखने वाली कमला वेंकटसन बताती हैं। सुधा बहुत धैर्य से सिखाती है उनका कला कमाल का है।