भारत और श्रीलंका के बीच स्थित मन्नार खाड़ी में पाया जाता है समुद्री खीरा। जिसकी कीमत 2 लाख 59 हजार प्रति किलो है। आपको बता दें कि यह खीरा कोई फल नहीं बल्कि एक जीव है। जिसकी बहुत तेजी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्मगलिंग की जा रही है। इस खीरे का प्रयोग कामोत्तेजना बढ़ाने की दवाई, कैंसर की दवा, तेल और कॉस्मेटिक बनाने में किया जाता है।
श्रीलंका के जाफना में रहने वाले मछुआरे एंथनी विग्राडो इस उम्मीद के साथ पाल्क की खाड़ी में गोता लगाते हैं कि वह समुद्र की सतह से कुछ नायाब चीजें बाहर निकालेंगे जो उन्हें पिछले 12 साल की कमाई के बराबर पैसा दिलाएगा। लेकिन 10 घंटे गोता लगाने के बाद एंथनी को कुछ समुद्री खीरे मिलते हैं एंथनी के मुताबिक उत्तरी श्रीलंका और दक्षिण भारत की कुछ मछुआरे दूसरे देशों में समुद्री खीरे की स्मगलिंग करते हैं, जिससे इनकी आय को बहुत नुकसान हो रहा है।
समुद्री खीरा एक एचिनडर्म नाम का जीव है, यह देखने में एक ट्यूब के आकार का है और काफी मुलायम व लचीले होता है। यह जीव समुद्री इको सिस्टम में अहम भूमिका अदा करता है, यह रेत में दबे छोटी जीवो को खाता है, वह पोषक तत्व को रिसाइकल करता है। इसके मल से समुंदर में नाइट्रोजन अमोनिया और कैल्शियम निकलते हैं, जो कोरल रिफ्स के लिए फायदेमंद होते हैं। इंसानी गतिविधि के बढ़ने की वजह से समुद्र में एसिड की मात्रा बढ़ गई है, जो इन जीवो में कमी ला रही है।
समुंद्री खीरे का आकार 10 सेंटीमीटर से लेकर 30 सेंटीमीटर तक होता है, इसकी एक प्रजातियां है जो 3 मीटर तक लंबी होती है। इनकी पूरे शरीर में टेंटिक्सल होते हैं जो बहुत नरम और लचीले होते हैं। यह शिकार करने व शिकारी से बचने के लिए 1 किलोमीटर तक की लंबी डाइव ले सकते हैं। समुद्री खीरे की मांग चीन समेत कई दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में है। जहां इन्हें पकाकर खाया जाता है, साथ ही कामोत्तेजना बढ़ाने वाली दवाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी वजह से इनकी कीमत पिछले 41 सालों में 50 गुना बढ़ गई है। यह 1980 में करीब ₹5200 प्रति किलो थी जो अब बढ़कर तकरीबन ₹21000 प्रति किलो हो गई है। वही समुंद्री खीरे की कुछ ऐसी प्रजातियां भी हैं जिनकी कीमत ₹259000 जाती है।
हालांकि भारत ने 2001 में ऐसे जीवो के कारोबार पर रोक लगा दी है लेकिन पिछले साल अगस्त में 1000 किलोग्राम समुद्रिक खीरे के साथ कुछ स्मगलर्स को भारतीय कोस्ट गार्ड पर पकड़ा गया था ओशनएशिया के मुताबिक जापान, चीन, भारत, जांजबार व अन्य कई दक्षिणी पूर्वी देशों में इसकी स्मगलिंग काफी तेजी से की जा रही है। जिसकी वजह से इनकी प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है।