हम सभी ने कारगिल युद्ध के बारे में सुना है, उस युद्ध में कई वीर सपूतो ने अपनी जान की बाजी लगाई थी। आज उन्ही में से एक कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरगाथा के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने 26 जुलाई 1999 को भारत में कारगिल युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। बहादुर सैनिकों की जीत का सम्मान करने के लिए आज 22वीं वर्षगांठ में ‘कारगिल विजय दिवस’ मनाया जा रहा है।
कारगिल में प्राण न्यौछावर करने वाले वीर सैनिकों में से एक कैप्टन विक्रम बत्रा भी थे। जिन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत के लिए मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कौन है, विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। उनके माता पिता गिरधारी लाल बत्रा और कमल कांता बत्रा है। उनके पिता सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे और उनकी माँ एक स्कूल टीचर थीं। विक्रम बत्रा की खेलों में काफी रुचि थी। 1990 में, उन्होंने और उनके भाई ने अखिल भारतीय केवीएस नेशनल्स में टेबल टेनिस में स्कूल का प्रतिनिधित्व किया। इसके साथ ही वह कराटे में ग्रीन बेल्ट थे। 1996 में, सीडीएस परीक्षा दी और उत्तीर्ण करने के बाद इलाहाबाद में सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) द्वारा उनका चयन किया गया।
विक्रम बत्रा के NCC कैंप के दिन
कैप्टन विक्रम बत्रा ने कॉलेज के समय एनसीसी, एयर विंग में शामिल हुए थे। 1994 में, उन्होंने एनसीसी कैडेट के रूप में गणतंत्र दिवस परेड की, और अगले ही दिन उन्होंने अपने माता-पिता से भारतीय सेना में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की थी।
विक्रम बत्रा सैन्य यात्रा
उन्होए बचपन में ही सोच लिया था की उन्हें सेना में जाना है। जून 1996 में, कैप्टन विक्रम बत्रा मानेकशॉ बटालियन में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में शामिल हुए थे। 19 महीने की ट्रेनिंग पूरी कर 6 दिसंबर 1997 को उन्होंने IMA से ग्रेजुएशन पूरा किया। उसके बाद 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन दिया गया। 1998 से 1999 तक उन्होंने बारामूला जिले, जम्मू और कश्मीर में सोपोर और मध्य प्रदेश के महू सहित महत्वपूर्ण आतंकवादी गतिविधियों वाले क्षेत्रों में प्रशिक्षण लिया। उसके बाद उन्होंने कर्नाटक के बेलगाम में कमांडो कोर्स के लिए प्रशिक्षण लिया, जहां उन्हें उच्चतम ग्रेडिंग इंस्ट्रक्टर ग्रेड से सम्मानित किया गया था।
कारगिल के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए
कारगिल युद्ध में इन्होने कई दुश्मनो की चौकियों पर अपना कब्ज़ा जमाया था। आतंकियों के भेष में मौजूद पाकिस्तानी सेना से आमने-सामने की लड़ाई जारी थी। इसी दौरान एक लेफ्टिनेंट के पैर में गोली लग चुकी थी। लेकिन इन्होए लगातार फायरिंग शुरू की। अपने लेफ्टिनेंट साथी की जान बचाने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा आगे बड़े, और अपने लेफ्टिनेंट साथी को खींच कर ला ही रहे थे तभी दुश्मन की एक गोली उनके सीने में आ लगी। जिससे विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो गए।