टाटा समूह को आज हम सभी जानते है, यह आज हमारे देश ही नहीं विश्व की जानीमानी कम्पनी में से एक है। लेकिन इसकी शुरुरात भी इतनी आसान नहीं रही थी, इसके पीछे भी काफी संघर्ष रहा है। इसी समूह का हिस्सा ‘टिस्को कम्पनी है। एक समय टाटा स्टील कम्पनी की स्थिति काफ़ी बिगड़ गई थी, जिसको सुधारने के लिए एक महिला ने इस कंपनी का साथ दिया था।
को आर्थिक तंगहाली से बाहर निकाला। आइए जानते हैं कि आख़िर कौन थी वह महिला और किस तरीक़े से उसने टाटा स्टील कम्पनी को आर्थिक दुश्वारियों के दौर से बाहर निकाला था।
कहानी लेडी मेहरबाई टाटा
यह कहानी लेडी मेहरबाई टाटा (Lady Meherbai Tata) की है, जिसकी बदौलत टाटा स्टील कंपनी को आज पहचान मिली है। इस महिला को आज कई लोग नहीं जानते है। इस महिला को पहली भारतीय नारीवादी प्रतीकों में माना जाता है। इन्होने बाल विवाह उन्मूलन से लेकर महिला मताधिकार तक और लड़कियों की शिक्षा से लेकर पर्दा प्रथा तक को हटाने के लिए कई कार्य किये है। इसने देश के सबसे बड़े स्टील कंपनी, टाटा स्टील को बचाने के लिए अपने हीरो का हार भी दे दिया था।
जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा ने अपनी पत्नी लेडी मेहरबाई के लिए लंदन के व्यापारियों से 245.35 कैरेट जुबली हीरा खरीदा था जो कि कोहिनूर (105.6 कैरेट, कट) से दोगुना बड़ा है। यह विश्वप्रसिद्ध हिरा था इसकी कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी। यह बेशकीमती हार लेडी मेहरबाई के लिए इतना खास था कि वह इसे स्पेशल मौकों पर पहनने के लिए रखती थी। लेकिन एक समय टाटा की स्थति इतनी खराब हो गयी थी की उन्हें अपने वर्कर को देंने के लिए पैसे नहीं थे। उस वक्त लेडी मेहरबाई के लिए कंपनी के कर्मचारी और कंपनी को बचाना ज्यादा सही लगा और वे जुबली डायमंड सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक को गिरवी रख दी ताकि वे टाटा स्टील के लिए फंड जुटा सकें।
इसी के कारण आज टाटा कम्पनी दोबारा खड़ी हो सकी और आज अपना नाम विश्व की बड़ी कम्पनियो में गिना जा रहा है।
जानिए कैसी लेडी थी मेहरबाई टाटा?
टाटा समूह के अनुसार, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना के लिए सर दोराबजी टाटा की मृत्यु के बाद जुबली हीरा बेचा गया था। लेडी मेहरबाई टाटा उन लोगों में से एक थीं, जिन्होंने समाज के लिए भी कई कार्य किये थे। इन्होने 1929 में पारित शारदा अधिनियम या बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम के लिए परामर्श किया गया था। इसके लिए उन्होंने भारत और अन्य देशों में भी प्रचार-प्रसार किया था। वह राष्ट्रीय महिला परिषद और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी हिस्सा रही। उन्होंने 1930 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के लिए समान राजनीतिक स्थिति की मांग की। इसके बाद इन्हे भारत को अंतरराष्ट्रीय महिला परिषद में भी शामिल किया गया था।