छत्तीसगढ़ के कांकेर में रहने वाली मनीषा जो एक किन्नर हैं। उनके बचपन में जब उनके माता-पिता को पता चला कि वह किन्नर है तो उन्होंने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। इसके चलते उन्हें एक किन्नर ने सहारा दिया। मनीषा अपनों का दर्द समझती है, इसी कारण उन्हें कोई भी अनाथ बच्चा मिलता है तो उसे वह घर ले आती हैं।
मनीषा किसी और बच्चे को अनाथ देखना नहीं चाहती हैं। मनीषा अभी तक 9 बच्चों को गोद ले चुके हैं और उनकी देखभाल खुद ही करती हैं।जिसमें ज्यादातर बेटियां हैं और उनकी टीम इन बच्चों के खाने के लिए कपड़े और पढ़ाई का इंतजाम करते हैं।
किन्नर बनी मां
मनीषा बताते हैं कि एक महिला जो पढ़े लिखे और परिवार से संपन्न थी । उसके गर्भ में एक बच्चा था, जिसे वह मारने के लिए दवा खा चुकी थी लेकिन वह रास्ते में ही तड़पने लगी। उसकी ऐसी स्थिति देखते ही उसे अस्पताल ले गए, लेकिन अस्पताल वाले डिलीवरी कराने से डर रहे थे तो मनीषा उसे अपने घर लाई और प्राइवेट डॉक्टर को बुलाकर उसकी डिलीवरी करवाई। वह महिला बेटी होने पर अपने साथ रखना नहीं चाहती थी जिसे मनीषा ने अपने पास रखा।
रोजगार के क्षेत्र में किन्नरों को विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने जब से किन्नरों के लिए मान्यता दी है। तब से उनके जीवन स्तर में काफी सुधार आया है। इन फैसलों के बाद 2017 में पहली बार एक किन्नर जज बनी और पहली पुलिस अधिकारी भी बने। इसके अलावा भी कई और सरकारी और निजी क्षेत्रों में किन्नरों ने सफलता हासिल की है। मनीषा मानती है कि लोगों का मिलाजुला नजरिया हमारे लिए रहा है। वह खुशी के मौके पर खुद ही बुलाते हैं तो बाद में बुरा भी मानते हैं। मनीषा अनाथ बच्चों के लिए आश्रम खोना चाहती हैं और उनका उद्देश्य है कि अनाथ बच्चों को अच्छी परवरिश शिक्षा मिले।