डियर पवन …
‘मुझे तुम्हारे दोनों पत्र मिले, दोनों लड़ाई के बीच में ही मिले। इस ऊंचाई पर दुश्मन के साथ लड़ाई सचमुच मुश्किल है। दुश्मन बंकर में छिपा है। हम खुले में हैं, दुश्मन पूरी तैयारी के साथ आया है। वह अधिकतर चोटियों पर कब्ज़ा कर चुका है। शुरुआत में हमारी स्थिति खराब थी, लेकिन अब हालात नियंत्रण में है। मैं खुद चार बार मौत का सामना कर चुका हूं, शायद कुछ अच्छे कर्म के कारण जिंदा हूं। हर दिन हमें देशभर से चिटि्ठयां मिल रही हैं।
लोगों ने लिखा है- जस्ट डू इट। ये देखने में सचमुच अच्छा लग रहा है कि जरूरत और मुश्किल वक्त में हमारा देश एक हो जाता है। मैं नहीं जानता अगले ही पल क्या होगा, लेकिन मैं तुम्हें और देश को भरोसा दिलाता हूं कि हम दुश्मन को धकेल देंगे। इस ऑपरेशन ने इतना कुछ सिखाया है कि उसकी गिनती नहीं। ‘इंडियन आर्मी सचमुच में अद्भुत है। वह कुछ भी कर सकती है। यहां बहुत सर्दी है, यदि सूरज निकल आए तो दिन ठीक हो जाता है।
रात में बहुत ठंड होती है, -5 डिग्री। एक निवेदन है…मेरे भाई को उसके अहम समय में गाइड करना। सभी दोस्तों को मेरा हेलो कहना, जब मैं लौटूंगा तो हमारे पास करने को कई बातें होंगी, फिर बात करेंगे… तुम्हारा मनोज
कारगिल युद्ध के हीरो रहे कैप्टन मनोज पांडे, 24 साल की छोटी सी उम्र में देश पर न्यौछावर होने वाले कैप्टन मनोज ने अपने दोस्त पवन को एक चिट्ठी लिखी और कहा अगर मेरे रास्ते में मौत आई तो मैं वादा करता हूं मैं मौत को मारूंगा, उन्होंने अपने इस कहे को कर दिखाया।
दुश्मनों की गोली से जख्मी होने के बावजूद भी उनकी उंगली बंदूक से नहीं हटी, उन्होंने अकेले ही दुश्मनों के तीन बंकर को नष्ट किया।खालूबार टॉप जीतने में इनका पूरा सहयोग रहा है। इस सपूत को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने मनोज पांडे के पिता गोपीचंद पांडे को वीरता का सबसे बड़ा सम्मान सौंपा था।
आज भी अगर कारगिल युद्ध की बात होती है तो कैप्टन मनोज पांडे का नाम बड़े ही श्रद्धा के साथ लिया जाता है।