कारगिल युद्ध– अपमान, साज़िश और धोखा

कारगिल युद्ध के बारे में हम सभी जानते है, यह विश्व के सबसे कठिन युद्ध मैदान सियाचिन ग्लेशियर में हुआ युध्य है। यह भारत और पाकिस्तान दोनों की सामरिक रणनीति के लिए बेहद अहम युद्ध कहलाया है। कई बार देखा गया है, की सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तान की नज़र रही है। पाकिस्तान ने कई बार इसके दावे को जताया है। जिसके लिए भारतीय सेना ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 12 अप्रैल 1984 को अपने सेनिको को हेलिकॉप्टरों से जवानों को ग्लेशियर के शिखर पर पहुंचाया।
सियाचिन पर भारत का कब्ज़ा
भारतीय सेना ने बिलाफोंड ला पर क़ब्ज़ा किया, उस समय सिया ला का हिस्सा भारत के क़ब्ज़े में था। उस समय पाकिस्तान की तरफ से भी जवाबी हमला किया गया था. लेकिन हमारी सेना ने पूरा सियाचिन क़ब्ज़े में कर लिया।
इससे पाकिस्तान शर्मसार हुआ और यह बात मीडिया से भी छिपा ली गयी उसके बाद पाकिस्तानी सेना ने कारगिल युद्ध के लिए प्लान बनाया और मंज़ूरी के लिए ज़िया उल हक़ को भेजा था उस समय उन्होंने इस युद्ध निति को ख़ारिज कर दिया।
पाकिस्तान की साजिश
सियाचिन की हार को पाकिस्तानी बर्दास्त बर्दास्त नहीं कर पाया। 1998 में जब परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष बने, तो उन्होंने एक टीम बनाई जो पाकिस्तान के इतिहास में गैंग ऑफ़ फोर के नाम से कुख्यात हुई उसमे उन्होंने जनरल परवेज़ मुशर्रफ़, जनरल अजीज, जनरल महमूद और ब्रिगेडियर जावेद हसन के नेतृत्व में युद्ध जो साजिश रची जैसे कारगिल युद्ध नाम दिया गया। उस सयम भारतीय प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी जी पद पर थे।
इसकी शुरुआत पाकिस्तान की सेना ने 1999 में जनवरी में पाकिस्तानी सेना के क़रीब 200 सेना मुजाहिद्दीन की शक्ल में कारगिल की पहाड़ियों पर चुपचाप उतारे थे। इनका पहला काम केवल दस पोस्ट पर क़ब्ज़े का प्लान था, जो अगर सफल हुआ तो और क़ब्ज़ा आगे बढ़ाते लेकिन उनकी यह रणनीति ज्यादा काम नहीं आयी। यह सभी कुछ ख़ुफ़िया तौर पर चलाया गया था। इसकी जानकारी पाकिस्तान के डीजीएमओ, डीजीएमआई, एयर फ़ोर्स चीफ और नेवी चीफ तक किसी को भी नहीं थी।
धोखा
पिछले वर्ष 11 विपक्षी दलों ने क़्वेटा में इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ी रैली की थी, जिसमे उन्होंने एक वीडियो के मध्यम से बताया की पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने दावा किया कि करगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के पास हथियार तक नहीं थे और जो जनरल करगिल युद्ध के पीछे थे, इस असफलता को छिपाने के लिए उन्होए पाकिस्तान में मार्शल लॉ घोषित कर दिया था। इस बात से यह अंदाजा लगाया की नवाज़ शरीफ़ को कारगिल हमले की कोई जानकारी नहीं थी? या वो सब कुछ जानते हुए भी चुप रहकर अनजान बने रहे।

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