भारतीय सेना ने अपने शौर्य से देशवासियों का मान हमेशा बढ़ाया है। इसके लिए उन्होंने हर तरह से स्थति को नियंत्रण करने का प्रयास किया है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे है, जो कारगिल युद्ध के समय हुई थी। 1971 में हमारी सेना के आगे घुटने टेकने वाले पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में भी अपने धोखे की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान नैतिकता और विनम्रता को दर्शाया है।
यह बात ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) एमपीएस बाजवा ने शेयर की हैं। उन्होंने बताया है कि 22 साल पुराने इस युद्ध में हमने कैसे पाकिस्तान के दांत खट्टे किए। 26 जुलाई के दिन ही कारगिल में भारतीय सेना ने अपनी सभी पोस्टों पर दोबारा कब्जा कर लिया था। युद्ध अंतिम स्थति में था, उन्होंने बताया कि धोखे से पाकिस्तानी सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था। कई दिनों के संघर्ष के बाद आखिरकार 4 जुलाई 1999 को भारतीय सेना टाइगर हिल को दोबारा अपने कब्जे में लेने में सफल हुई।
इस दौरान कई सैनिक शहीद भी हुए थे, 12 जुलाई से 18 जुलाई 1999 तक ‘शांति’ का ऐलान किया गया। जिसका मकसद पाकिस्तान को अपनी सेना को वापस बुलाने का समय देना था। लेकिन 19 फ्रंटियर फोर्स ‘जुलु स्पर’ कॉम्प्लेक्स पर कब्जा किए हुए है। कारगिल युद्ध के आखिरी दिनों को याद करते हुए बाजवा ने लिखा कि पाकिस्तान से एक कॉल आया। उन्हें बताया गया कि दुश्मन के 19 फ्रंटियर फोर्स के कर्नल मुस्तफा उनसे बात करना चाहते हैं। मैसेज था ‘पाकिस्तान फॉर इंडिया’। बाजवा ने मुस्तफा से बात शुरू की।
बाजवा ने मुस्तफा से पूछा वह क्या चाहते हैं। मुस्तफा ने कहा, ‘मैं सबसे पहले आपको बधाई देना चाहता हूं कि आपकी सेना ने बड़ी बहादुरी से लड़ा।’ इस पर बाजवा ने धन्यवाद कहा और कॉल का मकसद पूछा। मुस्तफा ने बताया, हमारी 13 डेड बॉडीज और संभवत एक जीवित सैनिक आपके पास है। हमारी आपसे गुजारिश है की, उन्हें लौटा दें। यह मेरी इज्जत का सवाल है।’ इस पर बाजवा ने कहा कि कर्नल मुस्तफा अभी तो हमें आप पर एक और हमला करना है।
तब उन्होंने कहा की आपको इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। हम वापस लौट रहे हैं।’ बाजवा चौंक गए और मुस्तफा से पूछा कि उनका वह कैसे यकीन करें। मुस्तफा ने तुरंत जवाब दिया, ‘सर, मैं ‘पठान हूं’। बाजवा ने इसके जवाब में कहा, ‘ठीक है, मैं भी सरदार हूं।’
इसके बाद बाजवा ने मुस्तफा से कहा कि हम पाकिस्तान के झंडे में लपेटकर आपके सेनिको के शव पूरी इज्जत के साथ लौटाएंगे। वे अब शत्रु नहीं, सिर्फ सैनिक हैं। वादे के मुताबिक वे भी लौट गए। इस तरह कारगिल युद्ध खत्म हुआ।