राजा महाराजाओं की बात की जाए तो इतिहास में आपको बहुत से ऐसे राजा महाराजा और बादशाह की कहानी सुनने को मिलेगी। जिनके वीरता के किस्से बहुत मशहूर थे और उनकी वीरता से आसपास के प्रशासन भी खौफ खाते थे। कुछ राजा महाराजाओं के सोच और घिनौनी हरकतों की वजह से भी इतिहास में उन्हें याद रखा गया है और कुछ सुल्तानों को तो उनके आदतों और शोक की वजह से भी जाना जाता है।
ऐसा ही एक सुल्तान था। सुल्तान महमूद बेगड़ा जो अन्य सुल्तानों से सबसे अलग ही था। यह सुल्तान अपने शासन से नहीं बल्कि अपने खान-पान और जहर पीने के वजह से चर्चा में रहता था।
52 साल तक गुजरात में राज करने वाला सुल्तान
महमूदप जिसे लोग महमूद बेगड़ा के नाम से भी जानते थे। 13 साल की उम्र में गुजरात सल्तनत की गद्दी पर बैठा और 52 सालों तक राज किया। गिरनार और चंपानेर के किलों को जीतने के कारण उसे बेगड़ा की उपाधि मिली थी। हालांकि यह शासक अपने शासन से ज्यादा अपने खानपान लंबी दाढ़ी मूंछ के वजह से ज्यादा ही जाना जाता था।
सुल्तान की खुराक
मोहम्मद बेगड़ा की खुराक 1 दिन के लगभग 35 किलो थी। सुल्तान को रात में भूख लग जाती थी और इसे बिस्तर के दोनों तरफ मांस भरे समोसे रखे जाते थे ताकि अगर उसे भूख लगे तो उन्हें खा सकें। इतावली यात्री Ludovico di Varthema ने अपने पत्रों में भी सुल्तान के भारी भरकम भोजन का जिक्र किया है।
बेगड़ा सुबह एक गिलास शहद और डेढ़ सौ से ज्यादा केले खाता था। दोपहर में भरपेट खाने के साथ ही उसे मीठा खाने का बहुत शौक था। 4 किलो से ज्यादा वह मीठा खा जाता था।
महमूद बेगड़ा के डाइट में जहर भी
देवड़ा के सबसे दिलचस्प आरती की व रोजाना खाने में जहर भी शामिल था। पुर्तगाली यात्री Duarte Barbosa ने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया जाता है कि बचपन में सुल्तान को मारने की साजिश मैं उसे जहर दिया गया था ।लेकिन वह बच गया और तब से वह थोड़ी थोड़ी मात्रा में खुद ही शहर लेना शुरू कर दिया ताकि शरीर को जहर की आदत हो जाए।
शक्तिशाली सुल्तान
बेगड़ा बेगड़ा गुजरात का सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक था। कुछ ही समय में जूनागढ़ और पावागढ़ जैसे क्षेत्रों में कब्जा कर अपनी सीमा का विस्तार कर लिया था। दूसरे राजाओं को हराने के बाद वह जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार करवाता था या फिर उन्हें मार डालता था। गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर को तोड़ने के लिए सुल्तान को ही जिम्मेदार माना जाता है। उसी के आदेश पर मंदिर तोड़ा गया था। 15 वीं सदी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।