300 चीनी सैनिकों से अकेले लड़ते रहे जसवंत सिंह ने, अरुणाचल को बचाया और आज भी करते हैं सीमा की रक्षा

भारत चीन के युद्ध की कहानी हम भारतीयों को अच्छे से याद है। चीन से युद्ध के समय अपनी वीरता का परिचय देने वाले जवानों को हम सदैव याद रखते हैं और हमें उन पर गर्व भी है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपना कब्जा करने का मन बना लिया था और इसी इरादे से उसने हमला भी किया था। लेकिन उनको क्या पता था कि भारतीय सैनिक राइफलमैन जसवंत सिंह रावत के होते हुए उसका यह इरादा कभी कामयाब नहीं होगा और वह उन सब के लिए काल साबित हुए।

उन्हें अकेले ही 300 चीनी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए। सुबह 5:00 बजे से नाटोक के नजदीक चीनी ने हमला किया और इस समय वहां गढ़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने उनका मुकाबला किया। इसी कंपनी का हिस्सा जसवंत सिंह रावत भी वहां थे। अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने 72 घंटे तक लगातार युद्ध जारी रखा।

जसवंत ने अकेले ही 300 सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए। चीनी सेना को अरुणाचल की सीमा पर रोकने में कामयाब भी हुए, पर उन्हें पूरी तरह से नहीं हटा सके। ऐसा सुना जाता है कि उन्हें पीछे हटने को भी कहा गया था तो बिना पीछे हटे आखिरी दम तक डटकर दुश्मनों का सामना किया। जसवंत सिंह की वीर गाथा में सेला और नूरा नाम की दो बहनों का जिक्र है। लड़ाई के समय जब उनके सारे साथी शहीद हुए तब उन्होंने सोचा कि वह लड़ाई का तरीका ही बदले और उन्हें एक योजना बनाई।

इस योजना के अनुसार उन्होंने चीनी सैनिकों को जताया कि भारतीय सैनिक खत्म हो चुके हैं और उन्होंने सारा गोला बारूद बंकरों में छिपा दिया और इस काम में उनकी बहन सेला और नूरा ने उनका साथ दिया। जब चीनी को लगा कि भारतीय सेना समाप्त हो गए हैं तो वह निडर होकर आगे बढ़े।

जैसे ही मौका मिला जसवंत ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दी वह चीनी सैनिक पर भारी पड़ने लगे। अकेले ही उन्होंने चीनी सैनिक के दांत खट्टे कर दिए। जब उन्हें लगा कि अब वह पकड़े जाएंगे तो उन्होंने मौत को भी गले लगा लिया। जसवंत को शहीद हुए काफी समय हो गए हैं लेकिन आज भी लोगों का मानना है कि जसवंत अभी भी जीवित है और सीमा पर तैनात है।

अरुणाचल के लोगों ने जसवंत की याद में जसवंतगढ़ का निर्माण किया है। जसवंतगढ़ में एक मकान है। जिसमें एक वबिस्तर रखा हुआ है।आज भी इसे सेना का जवान उसे रोज ठीक करते हैं। इनके जूते पॉलिश करते हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जसवंत इकलौते ऐसे शहीद है जिनकी शहादत के बाद भी प्रमोशन होता है। अभी मेजर जनरल के पद पर है। मरणोपरांत महावीर चक्र जैसे सम्मान से सम्मानित किया गया है।

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