जूता चप्पल की दुकान पर काम करते हुए अपनी मेहनत से आईएएस अधिकारी बने शख्स के संघर्ष की कहानी

IAS officer

राजस्थान के जयपुर के रहने वाले शुभम गुप्ता की कहानी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। शुभम ने अपने पिता के जूता चप्पल की दुकान को संभालते हुए यूपीएससी का एग्जाम क्रक किया और आईएएस बन देश में अपने और अपने पिता की एक अलग पहचान कायम की।

पिता ने बताई बेटे की कामयाबी की कहानी
शुभम के पिता अनिल गुप्ता ने अपने बेटे के 28 वें जन्मदिन पर एक न्यूज़ चैनल से बातचीत के दौरान अपने बेटे के संघर्ष की कहानी को बताते हुए रो पड़े। जयपुर में ठेकेदारी का काम किया करते थे। शुभम के पिताजी अनिल गुप्ता की कमाई काफी अच्छी नहीं थी। जिसके कारण वह पूरे परिवार को लेकर महाराष्ट्र के पालघर जिले के देहलू रोड पर चले गए और वहां जाकर जूते चप्पल की दुकान खोल ली।

वहीं पर श्री नारायण गुरुकुल में शुभम का दाखिला करवा दिया। शुभम स्कूल से आने के बाद दुकान पर बैठते थे। पिताजी ने कभी नहीं सोचा था कि जूता चप्पल बेचकर उनका बेटा 1 दिन अफसर भी बन जाएगा। दसवीं की पढ़ाई के बाद शुभम दिल्ली चले गए और हॉस्टल में रहकर इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र से b.a.और m.a. किया। अपने चौथे प्रयास में आईएएस अफसर बनने के सपने को शुभम गुप्ता ने साकार किया।

चौथे प्रयास में मिली कामयाबी

यूपीएससी की तैयारी कर रहे शुभम को पहली सफलता नहीं मिली थी। उन्होंने यूपीएससी में दूसरे प्रयास में 366 में रैंक मिली। रैंक के अनुसार इनको आईएएस बनने के बजाय आईएएस बनने का मौका मिला। अपने ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। भारतीय अंकेक्षण और लेख सेवा में काम करने के दौरान इन्होंने 2018 में यूपीएससी की परीक्षा फिर से दिया और उन्होंने छठवां स्थान प्राप्त किया यूपीएससी टॉपर बन गये।

ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एडीएम एसडीएम और तहसीलदार के रूप में पोस्टिंग मिली थी और ट्रेनिंग के बाद इन्हीं नागपुर के एडापल्ली में एडीएम के पद पर तैनाती हुई।

परिवार आज भी किराए के मकान में रहता है

शुभम के पिता महाराष्ट्र से जयपुर लौट आए और यहां आकर अपने बड़े भाई के साथ बिल्डर के रूप में काम कर रहे हैं। शुभम की मां ग्रहणी है। शुभम ने रेवाड़ी के ईशा के साथ शादी की है। उनका पूरा परिवार रेंट के मकान में रहता है। शुभम नौजवानों के लिए एक प्रेरणा है। अपनी मेहनत से आगे बढ़े और अपने देश का नाम रोशन किया।

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