उत्तर प्रदेश के इस गांव के हर घर में हैं, एक आईएएस या आईपीएस अफसर – देखिये |

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हम सभी जानते है की, आईएएस या आईपीएस ऑफिसर बनना कितना मुश्किल होता है। लेकिन हम आपको आज उत्तर प्रदेश के एक ऐसे गाँव के बारे में बतायेगे जहा के हर घर में एक आईएएस या आईपीएस ऑफिसर बनकर निकला है। जानिए इस गाँव के बारे में पूरी खबर को।

उत्तर प्रदेश का यह गांव आज सुर्खियों में बना हुआ है। इस गाँव की खासियत ही की यहां के हर घर से कोई ना कोई अफसर बनकर निकला है। इस गांव का नाम प्रशासनिक गलियारों में सुर्ख़ियों में रहता है।  गाँव ज्यादा बड़ा नहीं है, इस गांव में सिर्फ 75 घर हैं, लेकिन, यहां के घरो से कुल 47 आईएएस अफसर उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

पहला सिलेक्शन 1914 में हुआ था

इस गांव का नाम जोनपुर है, यहां सर्वप्रथम साल 1914 में गांव के युवक मुस्तफा हुसैन का पीसीएस की परीक्षा में चयन हुआ था। इसके बाद 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की 13वीं रैंक में चयन हुआ। इसके बाद यहां के युवाओ में इस पद को प्राप्त करने के लिए जागरूकता आयी। इन्दू प्रकाश सिंह फ़्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत भी रहे।

एक साथ 4 भाई आईएएस बने

इन्दू प्रकाश की सफलता के बाद इस गांव के चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर गाँव का नाम रोशन किया, 4 भाइयो ने एक साथ इस पद को प्राप्त करने का एक रिकॉर्ड कायम किया। इसके बाद 1955 में विनय सिंह आगे चलकर बिहार के प्रमुख सचिव बने। इस गाँव के दो सगे भाई छत्रपाल सिंघ और अजय सिंह एक साथ आईएएस के लिए सन 1964 में चुने गए थे।

इस गांव की आबादी ज्यादा नहीं है, इस गाँव में करीब 800 लोगों की बस्ती है। लेकिन इस गांव में अक्सर लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ियां अक्सर देखने को मिलती है। इस गांव की महिलाएं भी पुरुषों से पीछे नहीं हैं, यहां की आशा सिंह 1980 में कुंवर चंद्रमौल सिंह 1983 में और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983 में, अमिताभ 1994 में आईपीएएस, तो उनकी पत्नी सरिता सिंह 1994 में आईपीएस पद के लिए चुनी जा चुकी है।

जौनपुर गाँव की बात करे तो यहां का शिक्षा का स्तर  काफी बेहतर है। गांव का लिटरेसी रेट 95 प्रतिशत है, जबकि पुरे उत्तर प्रदेश की बात करे तो औसतन लिटरेसी रेट 69.72 प्रतिशत है। इस लिहाज से यह गाँव काफी सफल गांवों में से एक है, जिसने देश को इतने सारे ऑफिसर दिए है।

 

 

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