जब अपने आप से दूर होते हैं तो उसका एहसास काफी तकलीफ दे होता है और जब यह खबर मिलेगी कोई अपना आपसे इतना ज्यादा दूर हो गया है, जो कभी लौटकर ही नहीं आए और उसे आप देख भी न पाए अंतिम समय में तो फिर जीना बड़ा मुश्किल हो जाता है। उनकी यादें दिल से तो कभी नहीं जाती हैं लेकिन हां उनके बिना जीना बड़ा ही दुखद होता है।
गाजियाबाद के 1 शहीद फौजी जिनकी मौत के ठीक 16 साल बाद उत्तराखंड में बर्फ में दबा हुआ उनका शव मिला है। यह पर्वतारोही फौजियों का एक दल 2005 में गंगोत्री हिमालय की सबसे ऊंची चोटी सतोपंथ पर तिरंगा लहरा कर वापस लौट रहा था। रास्ते में असंतुलन से हादसा हुआ और 4 जवान सैकड़ों फीट नीचे खाई में गिर गए, उनमें से एक का शव नहीं मिला।
उनके मां-बाप की आखिरी इच्छा थी कि वह अपने बेटे का अंतिम दर्शन करें लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी उनका शव नहीं मिला।16 साल बाद शव मिलने से परिवार वालों के जख्म ताजा हो गए हैं।
शहीद का ड्रेस, नेम प्लेट और शरीर भी काफी हद तक सुरक्षित मिला है। परिवार वालों ने भी शव की पहचान कर ली है। 2 दिन की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद इनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया जाएगा।
शहीद अमरीश त्यागी गाजियाबाद के हिसाली गांव के रहने वाले हैं।अमरीश त्यागी इस दल में थे। उस दल में 25 सदस्य थे, 25 सदस्यों का यह दल स्वर्णिम विजय वर्ष के मौके पर हिमालय रेंज के बीच स्थित गंगोत्री नेशनल पार्क की दूसरी सबसे बड़ी चोटी है। इसी पर उन लोगों का तिरंगा फहराने का अभियान था। जिसकी ऊंचाई लगभग 70 से 75 मीटर है। जहां से अमरीश त्यागी का शव मिला है। उस जगह को हर्षल कहते हैं। सेनाओं के दल ने इनके शव को गंगोत्री पहुंचाया और पुलिस को सौंपा औपचारिकताओं के बाद पुलिस इनके परिवार को इनका शव सौंपेगी। परिवार वालों के जख्म फिर से भरे हों गए।