आमतौर पर कचरोंं को यूं ही जला देना या फेंक देना सही माना जाता है। लेकिन अगर इसका सही तरह से प्रयोग किया जाए तो यह कचरा भी हमारे लिए काफी उपयोगी साबित होगा। बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में रहने वाले 50 वर्षीय अशोक ठाकुर ने भी कचरे के उपयोग को महत्व देते हुए, एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है। जिससे आज तक कोई नहीं कर पाया था।
अशोक केवल सातवीं पास ही थे और अपने पिता कि लोहे के काम को ही संभाल रहे थे। वह दूसरों के घरों के लोहे के काम को करता, लोहे के चूल्हे आदि को बनाना, यही किया करते हैं। लेकिन बाद में उन्होंने कुछ अलग करने का सोचा।
अशोक ने सोचा कि बिहार में धान बहुत ज्यादा होता है क्योंकि यहां के लोग चावल बहुत खाते हैं तो धान की भूसी को लोग फेंक दिया करते हैं ऐसे में क्यों ना इस धान की भूसी को हम इंधन के रूप में प्रयोग करें।
इसी लिए अशोक ने लोहे के पारंपरिक चूल्हे में धान की भूसी को ईंधन के रूप में डाला लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली।
इसके बाद उन्होंने चूल्हे को ही मॉडिफाई करके उससे भूसी के चूल्हे के रूप में बनाया। उन्होंने कहा कि इस काम को सिर्फ अपने आइडियाज के दम पर ही किया था। उनके पास कोई परफेक्ट डिजाइन या फिर लेआउट नहीं था। इस चूल्हे की खासियत है कि इसे कहीं भी ले जा सकते हैं। इसका वजन मात्र 4 किलोग्राम है और यह धुआं रहित भी है।
इस चूल्हे को बनाने के बाद उन्हें काफी पहचान मिलु और कई सारे लोगों ने उनके बनाए हुए, इस चूल्हे को खरीदा। क्योंकि काफी लोगों के घरों में भूसी आसानी से उपलब्ध रहती है।
नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने दी पहचान-
साल 2013 में ज्ञान और सृष्टि के फाउंडर अमित गुप्ता के शोध यात्रा के दौरान उनके इस आविष्कार को सभी को देखने का मौका मिला। उन्होंने नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के इन्नोवेटर्स के रूप में अपना नाम बनाया। इसके बाद उनके चूल्हे की टेस्टिंग आईआईटी गोवाहटी और दिल्ली के TERI यूनिवर्सिटी में भी की गई।
उनके इस इन्वेंशन से काफी लोगों को रोजगार का साधन भी मिला। बहुत से किसान अब भूसी को फेंकने के बजाय इसे ₹10 किलोग्राम की दर से बेचते भी है। हमारे देश में आज भी अशोक जैसे कई सारे अंडररेटेड लोग रहते हैं। जो कि हमारे देश के लिए काफी बड़े काम कर सकते हैं। लेकिन मात्र नाम ना होने की वजह से उन्हें मौका भी नहीं मिल पाता है। अपने द्वारा की गई चीजों को लोगों तक दिखाने का। अशोक जी उन जैसे लोगों के लिए ही एक बड़ा उदाहरण है।