कहते हैं ना कि पानी सूखे पत्ते में भी जान डाल देता है, ठीक उसी प्रकार मानसून के आने पर पुराने किले भी हरे – भरे हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही हाल है, चित्तौड़गढ़ के किले का। जो मानसून की वजह से एक बार फिर हरा – भरा हो गया है। जिसे देख कर ऐसा लगता है मानो आज भी वहां राजा अपना शासन करता है।
आपको बता दें कि चित्तौड़गढ़ का यह किला 700 एकड़ में फैला हुआ देश का सबसे लंबा किला है। यह किला पहाड़ियों पर 500 फीट की ऊंचाई पर है। मानसून ने इस किले में एक बार फिर से जान डाल दी है। किले के आसपास की तालाबों में पानी लबालब भरा हुआ है। मानसून ने एक बार फिर किले की प्राकृतिक सुंदरता को उपहार दिया है। जो पर्यटकों का केंद्र बिंदु बन चुका है।
आपको बता दें कि यह किला 7वीं शताब्दी से अस्तित्व में है और यहां से कई राजाओं ने 7वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक शासन किया है। यह शूरवीरों का शहर भी माना जाता था। सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए राजाओं ने यहां पर लंबी – लंबी दीवारें बनवाई और गहरी खाईया खुदवाई है।
इस किले में सात दरवाजे हैं, जिनके नाम हिंदू देवताओं के नाम पर पड़े हैं। इनके नाम हैं पैदल पोल, भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोली पोल, लक्ष्मण पोल और अंत में राम पोल। इसकी विशेषता इसके अनोखे मजबूत किले, प्रवेश द्वार, बुर्ज, महल, मंदिर तथा जलाशय हैं, जो राजपूत वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने भी हैं।
युद्ध की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, इस किले में नुकीले पत्थरों का प्रयोग किया गया। इस किले पर तीन बार शत्रु सेना ने आक्रमण किया। पहला आक्रमण सन् 1303 में अलाउद्दीन खलिजी द्वारा, दूसरा सन् 1535 में गुजरात के बहादुरशाह द्वारा तथा तीसरा सन् 1567-68 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा किया गया था। यहां के शासकों ने इस्लामिक आक्रांताओं से बचने के लिए किले की दीवारें भारी पत्थरों से बनवाईं।
आपको बता दें कि दुर्ग के पास ही चित्तौडगढ़ में महावीर स्वामी के मंदिर के दर्शन भी लोग करते हैं। यहीं से कुछ दूरी पर खाने-पीने की भी व्यवस्था हो जाएगी। खाने के लिए यहां दाल-बाटी, चूरमा एवं अन्य राजस्थानी रेसिपी का भोजन मिलेगा।