अर्थशास्त्र और रणनीति के ज्ञाता चाणक्य। जिन्हें अर्थशास्त्र का जनक भी कहा जाता है। जिन्होंने भारत का अर्थशास्त्र और रणनीति की तरफ देखने का नजरिया ही बदल दिया। इन्होंने अपने ज्ञान के प्रकाश से कई राजाओं को राजनीति का उचित पाठ पढ़ाया है और आज भी अपनी लिखी पुस्तकों के द्वारा हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
आचार्य चाणक्य शुरू से ही वेदों और पुराणों की ज्ञाता थे। वह ज्ञान का प्रयोग राज्य और राजा के हित के लिए करना चाहते थे। वह चाहते थे कि मनुष्य को भले ही थोड़े समय के लिए कठिनाइयों का सामना करना पडे़। लेकिन उचित नीतियों को अपना कर उसे अपने वर्तमान और भविष्य को उज्जवल बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए।
आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य का बुरा वक्त तब आता है। जब वह अपने कमाए हुए पैसे अपनी ही गलतियों से खो देता है। मनुष्य की अपनी आदतें ही उसके जीवन में दुखों का कारण बन जाती है। जब मनुष्य अपने कमाए हुए धन को किसी दूसरे को उपयोग करते हुए देखता है तो वह उसके लिए सबसे दुखद स्थिति होती है।
इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को सदैव ही आत्मनिर्भर होना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति दूसरों पर आश्रित रहता है। वह हमेशा दुखी रहता है, उसे जीवन में कुछ करने की चाहत खत्म हो जाती है।
हमने अक्सर देखा है कि एक परिवार के सभी लोग परिवार के मुखिया पर आश्रित होते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि अगर घर के मुखिया को कुछ हो जाए तो घर के बाकी लोग भी टूट जाते हैं।
अगर हम एक परिवार में साथ रहते हुए भी आत्मनिर्भर बने तो अपने साथ-साथ परिवार की आई मुसीबतों को भी दूर कर सकते है।
चाणक्य के अनुसार मनुष्य को हमेशा फिजूलखर्ची से बचना चाहिए क्योंकि अगर वह धन की इज्जत नहीं करता, तो धन उसके पास ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता। ऐसे में लालची और पापी लोग इस हालात का फायदा उठाते हैं और हमारे पैसे को हमारे ही हाथों से कब छीन लेते हैं और हमें पता भी नहीं चलता इसलिए हमें हमेशा आत्मनिर्भरता और दूरदर्शिता को अपनाना चाहिए। जिससे हम अपना वर्तमान और भविष्य दोनों सुरक्षित रख सकें।